उसने ब्याह किया
और समझा कि अब वो पूर्ण हुआ
कि अब उसके एक पूँछ ऊग आई है
जो हमेशा उससे बँधी रहेगी
हर वक्त उसके पीछे चलेगी..
उसकी सफलता पर
मगन मस्त हिलेगी..
उसकी ख़ुशी में नाचेगी..
उसकी उदासी में
सीधी लटक जायेगी..
जब किसी अजनबी से मुख़ातिब होगा
सहम कर दुबक जायेगी..
जब कभी उद्विग्न होगा
डर कर पैरों में घुस जायेगी..
उसके हर भाव को अचूक अभिव्यक्त करेगी..
हाँ वो एक हद तक अच्छी पूँछ साबित हुई
और वो विशुद्ध ????
~निधि सक्सेना
सुंदर लेखन
ReplyDeleteहा हा बढ़िया।
ReplyDeleteबहुत खूब ...
ReplyDeleteउसे पूंछ उग आयी और उसे भी मूँछ.
ReplyDeleteफिर दोनों की बढ़ गयी सामाजिक पूछ!
....... हा हाहाहा ......बहुत बढ़िया !!!
सुंदर प्रतीकात्मक कविता.. बढ़िया
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteवह तो अच्छी पूँछ ही साबित होती आयी है....
ReplyDeleteअपना अस्तित्व खोकर....
सिर्फ पूँछ बनकर ही रह गयी....
सुन्दर व्यंगात्मक रचना...।