Wednesday, September 28, 2016

मादरी बोली में कहता हूँ .............राजेन्द्र स्वर्णकार


ग़ज़ल उर्दू में कहता हूं, ग़ज़ल हिंदी में कहता हूँ 
यहां तक…भोजपुरी में, मादरी बोली में कहता हूँ 

ग़ज़ल फ़न है, मैं सब बातें फ़न-ए-फ़ित्री में कहता हूँ 
नहीं यह भी कि ख़ुदगरज़ी या मनमर्ज़ी में कहता हूँ 

जदीदी शाइरी करता, रिवायत भी निभाता हूँ 
मैं तर्तीबो-तबीअत से ग़ज़ल लुगवी में कहता हूँ 

रदीफ़ो - क़ाफ़िये हैं बाअदब हर शे'र में हाज़िर
तग़ज़्ज़ुल में हर इक मिसरा मैं पाबंदी में कहता हूँ 

मुहतरम हैं बड़े उस्ताद-आलिम परख लें आ'कर
मुकम्मल बहर में कहता; मगर मस्ती में कहता हूँ 

जहां हूँ रू-ब-रू इंसानियत के गुनहगारों से
वहां अश्आर मैं बेशक़ बहुत तल्ख़ी में कहता हूँ 

ख़ुद-ब-ख़ुद संग में तब्दील कोई मोम कब होता 
वज़ह ढूंढें अगर कुछ लफ़्ज़ मैं तुर्शी में कहता हूँ 

मेहरबां सरस्वती मे'आर रखती क़ाइमो - दाइम
ग़ज़ल की ही मसीहाई पज़ीराई में कहता हूँ 

नहीं राजेन्द्र चिल्लाता, ख़ुशगुलूई मेरा लहजा
बुलंदी की कई बातें ज़ुबां नीची में कहता हूँ
-राजेन्द्र स्वर्णकार

2 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 29-09-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2480 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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