यहां तक…भोजपुरी में, मादरी बोली में कहता हूँ
ग़ज़ल फ़न है, मैं सब बातें फ़न-ए-फ़ित्री में कहता हूँ
नहीं यह भी कि ख़ुदगरज़ी या मनमर्ज़ी में कहता हूँ
जदीदी शाइरी करता, रिवायत भी निभाता हूँ
मैं तर्तीबो-तबीअत से ग़ज़ल लुगवी में कहता हूँ
रदीफ़ो - क़ाफ़िये हैं बाअदब हर शे'र में हाज़िर
तग़ज़्ज़ुल में हर इक मिसरा मैं पाबंदी में कहता हूँ
मुहतरम हैं बड़े उस्ताद-आलिम परख लें आ'कर
मुकम्मल बहर में कहता; मगर मस्ती में कहता हूँ
जहां हूँ रू-ब-रू इंसानियत के गुनहगारों से
वहां अश्आर मैं बेशक़ बहुत तल्ख़ी में कहता हूँ
ख़ुद-ब-ख़ुद संग में तब्दील कोई मोम कब होता
वज़ह ढूंढें अगर कुछ लफ़्ज़ मैं तुर्शी में कहता हूँ
मेहरबां सरस्वती मे'आर रखती क़ाइमो - दाइम
ग़ज़ल की ही मसीहाई पज़ीराई में कहता हूँ
नहीं राजेन्द्र चिल्लाता, ख़ुशगुलूई मेरा लहजा
बुलंदी की कई बातें ज़ुबां नीची में कहता हूँ
-राजेन्द्र स्वर्णकार
सुन्दर ..
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 29-09-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2480 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद