मिले ग़म से अपने फ़ुर्सत तो सुनाऊँ वो फ़साना|
कि टपक पड़े नज़र से मय-ए-इश्रत-ए-शबाना|
[मय=शराब; इश्रत=ख़ुशी; शबाना=रात]
यही ज़िन्दगी मुसीबत यही ज़िन्दगी मुसर्रत,
यही ज़िन्दगी हक़ीक़त यही ज़िन्दगी फ़साना|
[मुसर्रत=ख़ुशी]
कभी दर्द की तमन्ना कभी कोशिश-ए-मदावा,
कभी बिजलियों की ख़्वाहिश कभी फ़िक़्र-ए-आशियाना|
[मदावा= इलाज करना]
मेरे कहकहों के ज़द पर कभी गर्दिशें जहाँ की,
मेरे आँसूओं की रौ में कभी तल्ख़ी-ए-ज़माना|
[ज़द= रिश्ता;गर्दिश=बदकिस्मती]
कभी मैं हूँ तुझसे नाला कभी मुझसे तू परेशाँ,
मेरी र्फअतों ले लर्जा कभी मेहर -ओ-माह-ओ-अंजुम
मिरी पस्तियों से खाइफ़ कभी औज़-ए-ख़ुसरवाना
कभी मैं तेरा हदफ़ हूँ कभी तू मेरा निशाना|
जिसे पा सका न ज़ाहिद जिसे छू सका न सूफ़ी,
वही तीर छेड़ता है मेरा सोज़-ए-शायराना|
-मुईन अहसन जज़्बी
जन्म : अगस्त 1912, आजमगढ़ (उ.प्र.)
निधन : फरवरी 2005 अलीगढ़ (उ. प्र.)
वाह ।
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