कहाँ गुज़ारा दिन कहाँ रात किसी से न कहना
यहाँ कोई राज़ की बात किसी से न कहना
बड़े तंगदिल हैं लोग इक पल में बदल जायेंगे
अपना मज़हब अपनी ज़ात किसी से न कहना
कौन है दोस्त कौन दुश्मन कहना मुश्किल है
खुलकर अपने ज़ज़्बात किसी से न कहना
अपनी जीत की तो जम कर मुनादी करो मगर
कब हुई शह कब हुई मात किसी से न कहना
तुम्हारी ताक़त का किसी को भी अंदाज़ा न लगे
कौन है ख़िलाफ़ कौन साथ किसी से न कहना
कोई तो शरीक ए दर्द भी ज़रूरी है ज़िंदगी में
अच्छा नहीं यूँ दर्द ए हयात किसी से न कहना
इन आँखों के मौसम आँखों में छुपा कर रखना
कब हुआ सूखा कब बरसात किसी से न कहना
-डॉ. विजय कुमार सुखवानी
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (18-09-2016) को "मा फलेषु कदाचन्" (चर्चा अंक-2469) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 18 सितम्बर 2016 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
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