Wednesday, September 21, 2016

अपनी पहचान ढूँढता हूँ.......श्यामल सुमन



 तेरे प्यार में अभी तक मैं जहान ढूँढता हूँ
दीदार हो सका न क्यूँ निशान ढूँढता हूँ

जब मतलबी ये दुनिया रिश्तों से क्या है मतलब
इन मतलबों से हटकर इन्सान ढूँढता हूँ

खोया है इश्क़ में सब आगे है और खोना
ख़ुद को मिटाने वाला नादान ढूँढता हूँ

एहसास उनका सच्चा गिरकर जो सम्भलते जो
अनुभूति ऐसी अपनी पहचान ढूँढता हूँ

कभी घर था एक अपना जो मकान बन गया है
फिर से सुमन के घर में मुस्कान ढूँढता हूँ
-श्यामल सुमन
shyamalsuman@yahoo.co.in

2 comments:

  1. जय मां हाटेशवरी...
    अनेक रचनाएं पढ़ी...
    पर आप की रचना पसंद आयी...
    हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
    इस लिये आप की रचना...
    दिनांक 22/09/2016 को
    पांच लिंकों का आनंद
    पर लिंक की गयी है...
    इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।

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