उम्रेदराज़ काट रहा हूँ तेरे बगैर
गुलों से खार छांट रहा हूँ तेरे बगैर
हंसने को जी करे है न, रोने को जी करे
मुर्दा शबाब काट रहा हूँ तेरे बगैर
क्या जुर्म किया था जो, हिज़्र की सजा मिली
नाकरदा गुनाह को छांट रहा हूँ तेरे बगैर
ज़ख़्मों को सी लिया है, होंठों को सी लिया,
फिर भी खुद को डांट रहा हूँ तेरे बगैर
चंद लम्हें फुरसत के अब नसीब हुए हैं
गैरों के बीच बांट रहा हूँ तेरे बगैर
-निकेत मलिक
.....परिवार, पत्रिका
गुलों से खार छांट रहा हूँ तेरे बगैर
हंसने को जी करे है न, रोने को जी करे
मुर्दा शबाब काट रहा हूँ तेरे बगैर
क्या जुर्म किया था जो, हिज़्र की सजा मिली
नाकरदा गुनाह को छांट रहा हूँ तेरे बगैर
ज़ख़्मों को सी लिया है, होंठों को सी लिया,
फिर भी खुद को डांट रहा हूँ तेरे बगैर
चंद लम्हें फुरसत के अब नसीब हुए हैं
गैरों के बीच बांट रहा हूँ तेरे बगैर
-निकेत मलिक
.....परिवार, पत्रिका
Lazwab
ReplyDeleteKat gyee sari yu hi tere bagair
Kt jaygi baki umr bhi tere bagair
बेहतरीन ग़ज़ल
ReplyDeleteचंद लम्हें नसीब हुए
हम उनके करीब हुए
तेरे बगैर यूँ ही जिंदा हूँ
आज अपने ही रकीब हए
bahut badhiya
ReplyDeleteBaahut sunder prastuti haai aapki ..badhaayi !!
ReplyDeletelazwab rachna...sundar
ReplyDeletebhawnaao se oot-prot sunder abhivyakti !!
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