दोस्त नये-पुराने देखे.
नशे मुक्त शहरों में हमने,
गली-गली मयखाने देखे
प्रेम नगर की इस बस्ती में
राह खड़े दीवाने देखे.
रपट कहां कोई लिखवाए
गुण्डो के घर थाने देखे
इन वीरानी-सी आँखों में
ख्वाब कई सुहाने देखे
बेच ज़ायदाद ब़ुज़ुर्गों की
दौलतमंद सयाने देखे
-गोविन्द भारद्वाज
........... मधुरिमा
से
nic
ReplyDeleteइन बेवड़ों ने पहले तो पूजा स्थलों को अपवित्र किया, अब ये शिक्षा के मंदिरों को अपवित्र करने पर तूलें हैं.....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (06-09-2014) को "एक दिन शिक्षक होने का अहसास" (चर्चा मंच 1728) पर भी होगी।
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सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन को नमन करते हुए,
चर्चा मंच के सभी पाठकों को शिक्षक दिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
bahut sundar prasuti !
ReplyDeleteगुरु कैसा हो !
गणपति वन्दना (चोका )
रपट कहां कोई लिखवाए
ReplyDeleteगुण्डो के घर थाने देखे ! बहुत खूब !
अरे वाह .... बहुत ही अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteसाझा करने का आभार
बहुत सुंदर
ReplyDeleteप्रेम नगर की इस बस्ती में
ReplyDeleteराह खड़े दीवाने देखे.
बहुत खूब !
बहुत ही अच्छा ।
ReplyDeletehttp://dharmraj043.blogspot.com/2015/01/blog-post.html