जो मरुस्थल आज अश्रु भिंगो रहे हैं
भावना के बीज जिस पर बो रहे हैं
सिर्फ मृग-छलना नहीं वह चमचमाती रेत!
क्या हुआ जो युग हमारे आगमन पर मौन?
सूर्य की पहली किरण पहचानता है कौन?
अर्थ कल लेंगे हमारे आगमन का संकेत।
तुम न मानो शब्द कोई है नामुमकिन
कल उगेंगे चांद-तारे, कल उगेगा दिन,
कल फ़सल देंगे समय को, यही "बंजर खेत"।
-दुष्यन्त कुमार
....मधुरिमा से
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 18-09-2014 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1740 में दिया गया है ।
ReplyDeleteआभार ।
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteUmmeedein rwaan kar dete hain Dushyant kumar ji apni lekhani se.... Bahut sunder !!
ReplyDeleteवाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह
ReplyDeleteहालाकि जिनकी यह रचना है उन्हे दाद देने की औकात नही है
फिर भी...........