Friday, September 26, 2014

तेरे बगैर.............निकेत मलिक



उम्रेदराज़ काट रहा हूँ तेरे बगैर
गुलों से खार छांट रहा हूँ तेरे बगैर

हंसने को जी करे है न, रोने को जी करे
मुर्दा शबाब काट रहा हूँ तेरे बगैर

क्या जुर्म किया था जो, हिज़्र की सजा मिली
नाकरदा गुनाह को छांट रहा हूँ तेरे बगैर

ज़ख़्मों को सी लिया है, होंठों को सी लिया,
फिर भी खुद को डांट रहा हूँ तेरे बगैर

चंद लम्हें फुरसत के अब नसीब हुए हैं
गैरों के बीच बांट रहा हूँ तेरे बगैर

-निकेत मलिक
.....परिवार, पत्रिका

6 comments:

  1. Lazwab

    Kat gyee sari yu hi tere bagair
    Kt jaygi baki umr bhi tere bagair

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  2. बेहतरीन ग़ज़ल

    चंद लम्हें नसीब हुए
    हम उनके करीब हुए
    तेरे बगैर यूँ ही जिंदा हूँ
    आज अपने ही रकीब हए

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  3. Baahut sunder prastuti haai aapki ..badhaayi !!

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  4. bhawnaao se oot-prot sunder abhivyakti !!

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