ले गया दिल में दबाकर राज़ कोई,
पानियों पर लिख गया आवाज़ कोई.
बांधकर मेरे परों में मुश्किलों को,
हौसलों को दे गया परवाज़ कोई.
नाम से जिसके मेरी पहचान होगी,
मुझमें उस जैसा भी हो अंदाज़ कोई.
जिसका तारा था वो आंखें सो गई हैं,
अब कहां करता है मुझपे नाज़ कोई.
रोज़ उसको ख़ुद के अंदर खोजना है,
रोज़ आना दिल से इक आवाज़ कोई.
पानियों पर लिख गया आवाज़ कोई.
बांधकर मेरे परों में मुश्किलों को,
हौसलों को दे गया परवाज़ कोई.
नाम से जिसके मेरी पहचान होगी,
मुझमें उस जैसा भी हो अंदाज़ कोई.
जिसका तारा था वो आंखें सो गई हैं,
अब कहां करता है मुझपे नाज़ कोई.
रोज़ उसको ख़ुद के अंदर खोजना है,
रोज़ आना दिल से इक आवाज़ कोई.
-आलोक श्रीवास्तव
प्राप्ति स्रोत : वेब दुनिया
जिसका तारा था वो आंखें सो गई हैं,
ReplyDeleteअब कहां करता है मुझपे नाज़ कोई. सुन्दर !
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (19.09.2014) को "अपना -पराया" (चर्चा अंक-1741)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।
ReplyDeleteबांधकर मेरे परों में मुश्किलों को,
ReplyDeleteहौसलों को दे गया परवाज़ कोई.
लाजवाब रचना साँझा की है .... आभार
पासबां-ए-जिन्दगी: हिन्दी
उम्दा ग़ज़ल।
ReplyDeleteसुंदर.
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteअभिव्यक्ति.....
ख़ूबसूरत ग़ज़ल !!!
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteसादर
Sunder abhivyakti !!
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