Saturday, August 31, 2013

विरह-वेदना..................... शैफाली गुप्ता



1)  
चांद सजाऊं
 या आकाश बिछाऊं
न पाती तुम्हें

2)
 
तुम हो आत्मा
 तुम्हीं हो धड़कन
फिर भी कहां?

3)
 
नीला आकाश- 
उसके विस्तार में 
डूबती-सी मैं

4)

क्या याद तुम्हें 
आसमान का रंग 
नीलिमा-सी मैं

5)

स्याही का रंग 
उकेरती पन्नों पे 
सोचती तुम्हें

6)

स्पर्श तुम्हारा
 स्पंदन बन जीता 
आत्मा में मेरी

7)

रंग-विहीन 
जो जीवन हो मेरा
 रंग तुम्हीं तो

8)
 
तेरा न होना 
या तेरा क्यूं न होना 
प्रश्न ये मेरा

9)

नए-पुराने 
शब्द-ग्रंथ तुम्हीं हो 
फिर भी कहां।


--शैफाली गुप्ता
एन.आर. आई.

6 comments:

  1. खुबसूरत अभिवयक्ति....

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  2. बढ़िया प्रस्तुति है आदरणीया-
    शुभकामनायें -

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  3. शैफाली जी सुन्दर हाइकू साझा करने के लिए आभार ,,,

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  4. सुन्दर अभिवयक्ति....

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