आज़ादी की कीमत उन चिड़ियों से पूछो
जिनके पंखों को कतरा है, आ'म रिवाज़ों ने
आज़ादी की कीमत, उन लफ़्ज़ों से पूछो
जो ज़ब्तशुदा साबित हैं सब आवाज़ों में
आज़ादी की क़ीमत, उन ज़हनों से पूछो
जिनको कुचला मसला है, महज़ गुलामी को
आज़ादी की क़ीमत, उस धड़कन से पूछो
जिसको ज़िंदा छोड़ा है, सिर्फ सलामी को
आज़ादी की क़ीमत उन हाथों से पूछो
जिनको मोहलत नहीं मिली है अपने कारों की
आज़ादी की क़ीमत उन आंखों से पूछो
जिनको हाथ नहीं आई है, रोशनी तारों की
जो ज़िंदा होकर भी भेड़ों सी हांकी जाती है
आज़ादी भी रस्सी बांध के जिनको दी जाती है
जिस्मों से तो बहुत बड़ी जो मन से बच्ची हैं
'अब्बू खां की बकरी' भी उन से अच्छी है...
-सहबा जाफ़री
आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [26.08.2013]
ReplyDeleteचर्चामंच 1349 पर
कृपया पधार कर अनुग्रहित करें
सादर
सरिता भाटिया
बहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .. आपकी इस रचना के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (26.08.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर की जाएगी, ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें .
ReplyDeleteखूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि का लिंक आज सोमवार (26-08-2013) को सुनो गुज़ारिश बाँकेबिहारी :चर्चामंच 1349में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'