परसों से ईद पर रचनाएं तलाशते हुए मेरी नजर इस ब्लाग पर पड़ी 2012 को बाद इस ब्लाग में कोई पोस्ट नहीं है , आप भारत में नहीं रहती
वे पर्थ, आस्ट्रेलिया में रहती हैं.आपने पांच ब्लाग बनाए हैं और लगभग 1000 ब्लाग्स फॉलो किये हैं...सादर प्रस्तुत है इनकी रचना
झरता जाये,
झरना निरंतर,
गाता सस्वर !
गीत गूंजते,
मिल नाचे उर्मियाँ,
खिले नयन !
सुन्दर शोभा,
बहे पानी निर्मल,
जगे झरना !
खूब नहाये,
है आनंद मनाये,
खिलखिलाएँ !
मधुर गीत,
झरने के संग में,
गाये पंछी !
निहारूँ इसे,
ये बच्चों-सा उछले,
अपूर्व दृश्य !
उमंग भरा,
परिवार लगता,
सदा अनूठा !
-उर्मि चक्रवर्ती
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.in/
झरना की खुबसूरत अभिव्यक्ति बहुत सुंदर ...
ReplyDeleteप्रकृति के प्रेम से भरी इस कविता को पढ़ कर सावन की याद ताज़ा हो उठती है.
ReplyDeleteबढ़िया अभिव्यक्ति !!बहुत सुंदर ..
ReplyDeleteसुंदर हाइकु । बधाई उर्मि जी !
ReplyDelete!बहुत सुंदर हाइकु ..............
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पोस्ट .. आपके इस पोस्ट के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (12.08.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर की जाएगी, ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें .
ReplyDelete