Friday, August 31, 2018

उल्फ़त का इशारा कर गया.....हरिओम माहोरे

अंधेरे घर में जो मेरे उजाला कर गया,
वही क्यों आज फिर मुझसे किनारा कर गया।

हिदायत मुझको खुश रहने कि ही देता रहा,
भला क्यों आज खुशियाँ ना-गवारा कर गया।

रही थी दुश्मनी मेरी सदा जिस शख़्स से,
मिरे गिरते मकाँ पर वो सहारा कर गया।

मुझे क़ाफ़िर जुदा करता रहा सबसे यहाँ,
यहाँ तरक़ीब उसकी सब में ज़ाया कर गया।

जुबाँ से इश्क़ जो उनके बयां हो ना सका,
तो वो नजरों से उल्फ़त का इशारा कर गया।

"हरी" सब शोहरतों में चूर थे अपनी यहाँ 
तू अपने लफ़्ज़ यूँ क्यूँ इन पे ज़ाया कर गया।
~हरिओम माहोरे

3 comments: