आओ सखी मिल-जुलकर ये गीत गाओ।
बैरी सजना, अब तो सावन में घर आओ |
तुम्हारे बिना सूना है घर और यह ऑगन,
उदास है माथे की बिंदिया, शांत है कगन |
सेज काँटों-सा हुआ, ऐसे तो न तड़पाओ,
बैरी सजना, अब तो सावन में घर आओ |
अब कमरे में रात गहरी जब भी छाती है
कसम से तुम्हारी याद और ज्यादा आती है
आसुओं से फैलते कजरे को समझाओ
बैरी सजना, अब तो सावन में घर आओ |
रात करवटें बदलती अब कट रही है
मगक जेहन से याद तुम्हारी न हट रही है
लगी जो प्यार की अगन इसे तो बुझाओ
बैरी सजना, अब तो सावन में घर आओ |
आओ सखी मिल-जुलकर ये गीत गाओ।
बैरी सजना, अब तो सावन में घर आओ |
-विनोद सागर
आओ सखी मिल-जुलकर ये गीत गाओ।
ReplyDeleteबैरी सजना, अब तो सावन में घर आओ |
....विरह की सौंदर्य लिए सुंदर रचना।
वाह बहुत , ख़ूब बैरी सजना अब तो घर आओ
ReplyDeleteआँसूओं से फैलते कज़रे को समझाओ ......
आओ सखी मिलजुल कर ये गीत गाओ .....
बहुत सुंदर रचना 👌
ReplyDeleteअब कमरे में रात गहरी जब भी छाती है
ReplyDeleteकसम से तुम्हारी याद और ज्यादा आती है
wah! kya baat hai...bahut umdha
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आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 30.8.18 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3079 में दिया जाएगा
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद
वाह बहुत सुंदर विरह गान ।
ReplyDeleteवाह बहुत ही खूबसूरत गीत ! अत्यन्र हृदयस्पर्शी !
ReplyDeleteक्या खूब बयां किया
ReplyDeleteबहुत सुंदर गीत
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