Thursday, August 16, 2018

परिचय की वो गांठ....त्रिलोचन

1917-2007

यूं ही कुछ मुस्काकर तुमने
परिचय की वो गांठ लगा दी!

था पथ पर मैं भूला भूला 
फूल उपेक्षित कोई फूला 
जाने कौन लहर ती उस दिन 
तुमने अपनी याद जगा दी। 


कभी कभी यूं हो जाता है 
गीत कहीं कोई गाता है 
गूंज किसी उर में उठती है 
तुमने वही धार उमगा दी। 


जड़ता है जीवन की पीड़ा 
निस्-तरंग पाषाणी क्रीड़ा
तुमने अन्जाने वह पीड़ा 
छवि के शर से दूर भगा दी।
-त्रिलोचन

4 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (17-08-2018) को "दुआ करें या दवा करें" (चर्चा अंक-3066) (चर्चा अंक-3059) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत सुन्दर रचना

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  3. जड़ता है जीवन की पीड़ा
    निस्-तरंग पाषाणी क्रीड़ा
    तुमने अन्जाने वह पीड़ा
    छवि के शर से दूर भगा दी।
    .
    वाह वाह वाह वाह नमन है इस सिद्धहस्त लेखनी को🙏🙏🙏

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