शून्य से शिखर हो गए........सजीवन मयंक
शून्य से शिखर हो गए।
और तीखा ज़हर हो गए।।
कल तलक जो मेरे साथ थे।
आज जाने किधर हो गए।।
बाप-बेटों की पटती नहीं।
अब अलग उनके घर हो गए।।
है ये कैसी जम्हूरी यहाँ।
हुक्मरां वंशधर हो गए।।
क्यो परिन्दे अमन चैन के।
ख़ून से तरबतर हो गए।।
भूल गए हम शहीदों को पर।
देश द्रोही अमर हो गए।।
-सजीवन मयंक
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (12-08-2018) को "बता कहीं दिखा कोई उल्लू" (चर्चा अंक-3061) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
लाजवाब उम्दा रचना।
ReplyDelete1 1 sher umda…
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