इश्क़ का शौक़ जिनको होता है
मौत का न ख़ौफ़ उनको होता है
घूमते फिरते हैं फ़क़त दर बदर
ये मर्ज़ न हर किसी को होता है
ली होती है मंज़ूरी तड़पने की
मिला ख़ुदा से यही उनको होता है
चुनता है वो भी ख़ास बन्दों को ही
इसलिये न जिसको तिसको होता है
सहरा की रेत हो या फ़ाँसी का फंदा
गिला कुछ भी न उनको होता है
अख़्तियार में कुछ रह नहीं जाता
ये इशारा जब दिल को होता है
ख़्याल निर्मल को ये सता रहा है
ख़ुदाया, क्यों नहीं सबको होता है
-निर्मल सिद्धू
खुदा चुनता है खास बन्दों को
ReplyDeleteइस लिए सबको नहीं होता ।
सुंदर रचना से अवगत करवाया।
आभार
आपको सूचित किया जा रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल सोमवार (13-08-2018) को "सावन की है तीज" (चर्चा अंक-3062) पर भी होगी!
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुंदर रचना
ReplyDeleteवाह बहुत सुन्दर
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