Sunday, August 5, 2018

गमों की आग...हरिहर झा


गीत धड़कन से निकल 
कर्कश हुये 
टकरा ग़मों से, 
आग की बरसात हुई। 

बदक़िस्मत! 
ख़ुदा तक पहुंच कर, 
लौटी अधूरी मांग
लो! दिल की हमारी;
स्वाद में ऐसा लगा,  
चाश्नी में किस तरह  
नीम कड़ुवे की शुमारी। 
ठोक माथा-मुँह छिपा रोये, 
किसी दीवार से लगती  
किस्मत जा कहीं सोई। 

पेट ख़ाली, 
तड़पते हों भूख से पर 
ख़्याल में 
पकवान ही साधा।
तारों पर नज़र ,
और गड्ढे सड़क पर भरपूर  
कैसे दूर हो बाधा? 
कंगाली, फटेहाली में, जीते 
महल सपनों के  
बनाये क्या करे कोई!!  
-हरिहर झा

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (06-08-2018) को "वन्दना स्वीकार कर लो शारदे माता हमारी" (चर्चा अंक-3054) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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  2. मर्मस्पर्शी रचना

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