मुस्कुराता हुआ ख़्वाब है आँखों में
महकता हुआ गुलाब है आँखों में
बूँद-बूँद उतर रहा है मन आँगन
एक कतरा माहताब है आँखों में
उनकी बातें,उनका ही ख़्याल बस
रोमानियत भरी किताब है आँखों में
जिसे पीकर भी समन्दर प्यासा है
छलकता दरिया-ए-आब है आँखों में
लम्हा-लम्हा बढ़ती बेताबी दिल की
ख़ुमारियों का सैलाब है आँखों में
लफ़्जों की सीढ़ी से दिल में दाख़िल
अनकहे सवालों के जवाब है आँखों में
#श्वेता
शुभ प्रभात सखी
ReplyDeleteबेहतरीन ग़ज़ल
सादर
वाह!!श्वेता ,बहुत सुंदर !!
ReplyDeleteवाहह!!बेहतरीन गजल..
ReplyDeleteबहुत सुंदर आँखें और उनसे ज्ज़बात ..श्वेता जी।
जिसे पीकर भी समन्दर प्यासा है
ReplyDeleteछलकता दरिया-ए-आब है आँखों में....खूबसूरत खुमारी! वाह!!!
बेहतरीन रचना
ReplyDeleteउनकी बातें,उनका ही ख़्याल बस
ReplyDeleteरोमानियत भरी किताब है आँखों में
मंच लूटने वाली ग़ज़ल। बहुत ही खूबसूरत। लाज़वाब श्वेता जी।
वाह
ReplyDeleteवाह बेहतरीन ....प्रिय श्वेता
ReplyDeleteआँखें तब ही आँखें है
जब ख्वाब रहे देखें संभले
तन्हाई हो या रौनके बजार
उन आंखों में रोशनाई हो !
नमन
वाह बहुत सुंदर !!
ReplyDeleteआंखों में क्या क्या नही है जमाने की सारी शय आंखों में हैं
ना देखों तो कुछ नही वर्ना दिल तक जाने का सेतू आंखों में है।
हमने देखी है इन आंखों की महकती खुशबू ...
वाह ...
ReplyDeleteहर शेर कमाल का है ... आँखों का कमाल हर शेर बोल रहा है ...
ग़ज़ब रचना ...
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 23.8.2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3072 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
ऑंखें कितना कुछ न बोलते हुए भी बोल जाती हैं
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
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ReplyDeleteबेहतरीन👌👌
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना ...बहुत खूब 👌👌👌
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