ख़्वाब मेरी आँख में पलते रहे हैं।
अहर्निश हर-पल वही सजते रहे हैं।।
मोतियों से जो सितारे आसमां में,
आँख से मेरी ही तो झरते रहे हैं।
रेत के टीले पे जा के देखिये, वो
कल्पना की मृगतृषा रचते रहे हैं।
वो न इन अश्कों से भीगेंगे कभी भी,
जिनके मन पर-पीर से बचते रहे हैं।
'प्रेम' के परवाज़ से मत पूछिए, क्यों
हौंसले उनको हसीं लगते रहे हैं।।
-डॉ. प्रेम लता चसवाल ''प्रेमपुष्प''
बहुत ही खूबसूरत।
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरुवार 2 अगस्त 2018 को प्रकाशनार्थ 1112 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज गुरुवार (02-08-2018) को "गमे-पिन्हाँ में मैं हस्ती मिटा के बैठा हूँ" (चर्चा अंक-3051) पर भी है।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'