Sunday, August 26, 2018

माँ का दुलार....जी. एस. परमार

नीम की छाँव सा 
प्यार के गाँव सा 
मधु के स्वाद सा 
आत्मा की नाद सा 
माँ का दुलार था वो 
कितना अलौकिक प्यार था वो |

कोयल की गुनगुन सा 
पायल की रूनझुन सा 
नदी की कलकल सा 
झरने की छलछल सा 
प्रकृति माँ का सत्कार था वो 

माँ का दुलार था वो 
कितना अलौकिक प्यार था वो। 
ग्रीष्म भोर की बयार सा, 
सजीले सावन की फुहार सा
सर्दी की सुहानी धुप सा 
मंडराते बसंती मधुप सा, 
माँ की ममता की बौछार था वो 

माँ का दुलार था वो 
कितना अलौकिक प्यार था वो 
- जी. एस. परमार 
नीमच, मध्यप्रदेश

4 comments:

  1. आपको सूचित किया जा रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल सोमवार (27-08-2018) को "प्रीत का व्याकरण" (चर्चा अंक-3076) पर भी होगी!
    --
    रक्षाबन्धन की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
  2. बहुत बढ़िया लिखा । लाजवाब!!!

    ReplyDelete
  3. Sach mein... alaukik bhi hota hai, aur avismarniya bhi.

    ReplyDelete