बाँटी हो जिसने तीरगी उसकी है बन्दगी।
हर रोज नयी बात सिखाती है ज़िन्दगी।।
क्या फ़र्क रहनुमा और क़ातिल में है यारो।
हो सामने दोनों तो लजाती है ज़िन्दगी।।
लो छिन गए खिलौने बचपन भी लुट गया।
यों बोझ किताबों की दबाती है ज़िन्दगी।।
है वोट अपनी लाठी क्यों भैंस है उनकी।
क्या चाल सियासत की पढ़ाती है ज़िन्दगी।।
गिनती में सिमटी औरत पर होश है किसे।
महिला दिवस मना के बढ़ाती है ज़िन्दगी।।
किरदार चौथे खम्भे का हाथी के दाँत सा।
क्यों असलियत छुपा के दिखाती है ज़िन्दगी।।
देखो सुमन की ख़ुदकुशी टूटा जो डाल से।
रंगीनियाँ काग़ज़ की सजाती है ज़िन्दगी।।
-श्यामल सुमन
बहुत उम्दा गजल।
ReplyDeleteसुन्दर ग़ज़ल
ReplyDeleteबेहतरीन
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