आज कोई तो फैसला होगा।
कौन जो दूध का धुला होगा।।
एक पगडंडी अलग से दिखती है।
कोई इस पर कभी चला होगा।।
होगी मशाल जिसके हाथों में।
पीछे उसके एक काफ़िला होगा।।
जो आदमी को गले लगाता था।
वो पागल आपको मिला होगा।।
झूठ बनकर गवाह आया है।
सांच की आंच में जला होगा।।
ठूँठ सा जो आज उपेक्षित है।
कभी इस पर भी घोंसला होगा।।
रोशनी का स्याह चेहरा है।
अंधेरे नें कहीं छला होगा।।
ये लावारिस पड़ा हुआ मुर्दा।
किसी की गोद में पला होगा।।
-सजीवन मयंक
बहुत अच्छे ....सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (14-08-2018) को "त्यौहारों में छिपे सन्देश" (चर्चा अंक-3063) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हरियाली तीज की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'