Friday, August 3, 2018

फन्दा............लक्ष्मीनारायण गुप्त


कुछ मुसीबतें, कुछ परेशानियाँ
ऐसी होती हैं जो फन्दे की तरह
गले पर पड़ जाती हैं
जितना प्रयत्न करो निकलने का
फन्दा उतना ही और कसता जाता है

ज़्यादा से ज़्यादा तुम यह कर सकते हो
कि फन्दे को स्वीकार कर लो
अंगीकार कर लो
शिव की तरह विष पान कर लो
फन्दा अब तुम्हारे जीवन की हक़ीकत है

जैसे तुम कारागार में सजा काट रहे हो
इस सजा की कोई अवधि नहीं है
या तो कोई चमत्कार होगा
जो तुम्हें मुक्त करेगा
या फिर यह काम यमराज करेंगे

दिक्कत यह है कि
फन्दा कभी स्वाभाविक नहीं हो पाता
बन्धन हमेशा बन्धन ही रहता है
इस लिए निकलने का व्यर्थ प्रयत्न
अविरल ज़ारी रहता है

फन्दा शाश्वत है
नियति है, प्रकृति है
तुम इससे पशु की तरह बँधे हो
मुक्त होने का प्रयास व्यर्थ है
बस आराम से चारा खाओ


-लक्ष्मीनारायण गुप्त
-१ अगस्त, २०१८

3 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (04-08-2018) को "रोटियाँ हैं खाने और खिलाने की नहीं हैं" (चर्चा अंक-3053) (चर्चा अंक-2968) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. अप्रतिम .कड़वा पर सत्य

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