Wednesday, August 29, 2018

बैरी सजना ....विनोद सागर

आओ सखी मिल-जुलकर ये गीत गाओ। 
बैरी सजना, अब तो सावन में घर आओ | 

तुम्हारे बिना सूना है घर और यह ऑगन, 
उदास है माथे की बिंदिया, शांत है कगन | 
सेज काँटों-सा हुआ, ऐसे तो न तड़पाओ, 
बैरी सजना, अब तो सावन में घर आओ | 

अब कमरे में रात गहरी जब भी छाती है
कसम से तुम्हारी याद और ज्यादा आती है
आसुओं से फैलते कजरे को  समझाओ
बैरी सजना, अब तो सावन में घर आओ | 

रात करवटें बदलती अब कट रही है
मगक जेहन से याद तुम्हारी न हट रही है
लगी जो प्यार की अगन इसे तो बुझाओ
बैरी सजना, अब तो सावन में घर आओ |

आओ सखी मिल-जुलकर ये गीत गाओ। 
बैरी सजना, अब तो सावन में घर आओ | 
-विनोद सागर

9 comments:

  1. आओ सखी मिल-जुलकर ये गीत गाओ। 
    बैरी सजना, अब तो सावन में घर आओ | 
    ....विरह की सौंदर्य लिए सुंदर रचना।

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  2. वाह बहुत , ख़ूब बैरी सजना अब तो घर आओ
    आँसूओं से फैलते कज़रे को समझाओ ......
    आओ सखी मिलजुल कर ये गीत गाओ .....

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  3. बहुत सुंदर रचना 👌

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  4. अब कमरे में रात गहरी जब भी छाती है
    कसम से तुम्हारी याद और ज्यादा आती है
    wah! kya baat hai...bahut umdha

    Do visit my blog https://successayurveda.blogspot.com/

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  5. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 30.8.18 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3079 में दिया जाएगा

    हार्दिक धन्यवाद

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  6. वाह बहुत सुंदर विरह गान ।

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  7. वाह बहुत ही खूबसूरत गीत ! अत्यन्र हृदयस्पर्शी !

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  8. क्या खूब बयां किया

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  9. बहुत सुंदर गीत

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