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घर से दफ्तर के लिए
निकलते समय रोज छूट
जाता है मेरा लांच बॉक्स और साथ ही
रह जाती है मेरी घड़ी
ये रोज होता हो मेरे साथ और
मुझे लौटना पड़ता है उस गली के
मोड़ से
कई वर्षो से ये आदत नहीं बदल पाया मैं
पर अब तक मैं यह नहीं
समझ पाया
जो कुछ वर्षों से नहीं हो पाया
वह कुछ महीनो में कैसे हो पायेगा
अखबार के माध्यम से की गई
तमाम घोषणाएं
समय बम की तरह लगती है
जो अगर नहीं पूरी हो पाई
तो एक बड़े धमाके के साथ
बिखर जायेगा सबकुछ......!!
- संजय भास्कर
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 14 जनवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteसुन्दर रचना।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना संजय भाई
ReplyDeleteमकर संक्रांति पर्व की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं 💐💐
ReplyDeleteक्या बात है !
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन
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