जर्जर काया
पराश्रित जीवन
बुढ़ापा भरी
उस पर नारी .....
मैं कौन ?
मेरी ख्वाहिशें क्या ?
अधेड़ प्रौढ़ा
कुल की माया
नाती-पोतों की आया
उपेक्षा के बदले
वारी वारी ........
लहलहाती फसल
खनकता कुन्दन
श्रृंगारित दासी
जर जमीन जोरू
जागीरदारी ........
आदमखोर स्वछंद
मासूम कैद
संभल कर चलो
ओ नारी !
अभी हो कुंवारी ....
दूध भैया का .....
खिलौने भैया के ......
स्कूल भैया जाएगा ..........
उफ !
बहुत बुरा है,
दो पैरों का जानवर
अपनी मादा के साथ |
शुक्र है मैं मुक्त हूँ
उन्मुक्त हूँ
जीवन रहा नही
मरण वार दिया
तन तारिणी
वन्ही (अग्नि) सागर
पल में पार किया ...
सांसें लेती
लाशों ने मुझे
कोख ही मे मार दिया
-विनय के जोशी
सुन्दर
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 20 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteमार्मिक चिंतन से भरी रचना |
ReplyDeleteवाह!!
ReplyDeleteक्या बात
उफ !
ReplyDeleteबहुत बुरा है,
दो पैरों का जानवर
अपनी मादा के साथ |
शुक्र है मैं मुक्त हूँ
उन्मुक्त हूँ