221. 2121. 1221. 212
मतला
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आंखों के आगे गिर रहे पत्ते चनार के
आंसू लहू के टपके दिले दाग दार के ।।
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हुस्ने मतला
सोचा किये कि जाएंगे मौला के द्वार पे
सपने अधूरे रह गए ग़म बेशुमार के।।
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छाया यहाँ नहींअब शायद इसी लिए
पेड़ों के कौन ले गया ज़ेवर उतार के ।।
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मिलने चले थे वक्त जुदाई का आ गया
उम्मीद के वो धागे हुये तार तार के।।
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-अरूणिमा सक्सेना
छाया यहाँ नहींअब शायद इसी लिए
ReplyDeleteपेड़ों के कौन ले गया ज़ेवर उतार के ।।
आदरणीया अरुणिमा जी, वैसे तो गजलें मुझे कम ही प्रभावित करती हैं, लेकिन आपके इन पंक्तियों में गजब की ताकत है और आकर्षण भी। लिखते रहें । बहुत-बहुत शुभकामनाएँ ।
वाह
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