वह...मंजू मिश्रा
वह
पूरे परिवार की
जिंदगी का ताना बाना होती है
घर भर के दुःख दर्द आँसू
हँसी मुस्कान और रिश्ते... सब
उसके आँचल की गांठ से बंधे
उसकी डिग्री या बिना डिग्री वाली
मगर गजब की स्किल्स के आस पास
जीवन की आंच में धीरे धीरे पकते रहते हैं
बच्चों के कच्ची माटी से भविष्य
उसके सधे हाथों में गढ़ते रहते हैं
और वह चौबीस घंटे धुरी सी
घूमती रहती है
सबकी साँसों में साँसे पिरोती रहती है
पता ही नहीं चलता
वो कब जान लेती है
सबके मन की बात
पर शायद ही
कोई जान पाता है
कभी उसके मन की बात
ये भी कोई कहाँ जान पाता है कि
कब होती है उसकी सुबह
और कब होती है रात
उसका सोना जागना
सब कुछ मानो
एक जादू की छड़ी सा
न जाने
कौन से पल में निपट जाता है
उसके पास
सबकी फरमाइशों का खाता है
सबके दुःख दर्द का इलाज
और घर भर के सपनों को
पालने का जुझारूपन भी
मौका पड़े तो लड़ जाए
यमराज से भी
पता नहीं ये अदम्य साहस
उसमे कहाँ से आता है
जो भी हो उसका
आसपास होना बहुत भाता है
जीवन से उसका अटूट नाता है
उसे माँ के नाम से जाना जाता है
उसकी डिग्री या बिना डिग्री वाली
ReplyDeleteमगर गजब की स्किल्स के आस पास
जीवन की आंच में धीरे धीरे पकते रहते हैं
अत्यन्त सुन्दर सृजन !!!
धन्यवाद मीना जी !
Deleteमौका पड़े तो लड़ जाए
ReplyDeleteयमराज से भी
पता नहीं ये अदम्य साहस
उसमे कहाँ से आता है
बहुत सुंदर।
Thank you Jyoti !
Deleteसच है। सुन्दर।
ReplyDeleteThank you !
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (10-07-2019) को "नदी-गधेरे-गाड़" (चर्चा अंक- 3392) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
यमराज से भी
ReplyDeleteपता नहीं ये अदम्य साहस
उसमे कहाँ से आता है
........बहुत सुंदर!!
बहुत बहुत सुंदर प्रस्तुति।
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