भीड़ देख अझुरायल हउवा?
भाँग छान बहुरायल हउवा?
बुधिया जरल बीज से घायल
कइसे कही कि सावन आयल!
पुरूब नीला, पच्छुम पीयर
नीम अशोक पीपल भी पीयर
केहू ना जरको हरियायल
कइसे कही कि सावन आयल!
कउने डांड़े में बदरा-बदरी
खेलत हउवन पकरा-पकरी
धुपिया से अंखिया चुंधियायल
कइसे कही कि सावन आयल!
कत्तो बिजुरी नाहीं चमकल
एक्को बुन्नी नाहीं बरसल
धरती धूप ताप धधायल
कइसे कही कि सावन आयल!
का भोले बाबा का कइला
बुन्नी के जटवा मा धइला?
खोला ! बरसे दा ! हहरायल
कइसे कही कि सावन आयल!
वाह
ReplyDeleteअति सुन्दर ।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 29 जुलाई 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteयहाँ तो चारों तरफ पानी ही पानी है..और आप कह रहे हैं सावन अभी आया ही नहीं..
ReplyDeleteवाह
ReplyDelete