माँ तेरा बचपन देख आया हूँ
माँ तुझे खेलता देख आया हूँ
मैंने देखा तुम्हें
अपनी माँ की गोद में रोते
देखा तुम्हें थोड़ा बड़ा होते
मिटटी सने हाथ देखे तुम्हारे
खिलौने भरे हाथ देखे तुम्हारे
तुम्हारी मासूम हँसी देखी
तुम्हारा रोना देखा
पापा का तुमपर बरसता प्यार देखा
माँ का तुम्हारे लिए दुलार देखा
तुम्हें पग पग बढ़ते देखा
मेंहदी लगे तेरे हाथों में
शादी के जोड़े में
सजा श्रृंगार देखा
आँखों में विदाई की पीड़ा
माँ पापा भाई बहन अपनों से
दूर जाने की पीड़ा
तेरा अलग बनता एक संसार देखा
तुम्हारी नयी दुनिया देखी
पराये थे जो कल तक
उनके लिए अपनेपन का भाव देखा
लाखों दर्द छुपाए
जिम्मेदारियों को ढोने का अंदाज देखा
ससुराल में रहकर भी
मायका के लिए अटूट प्यार देखा
माँ फिर मैंने खुद को देखा
तुम्हारी गोद में
तुम्हारी ममतामयी गोद में
तुम्हें मुझे खिलाते हुए
और माँ
अब तुम मुझे देख रही हो
खेलते हुए
बड़े होते हुए
बूढ़े होते हुए !
लेखक परिचय - शिवनाथ कुमार
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति सरल और कोमल मन को छूती।
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteबेहतरीन सृजन...