ख़्वाबो- ख़याल में ही तुम्हें सोचने लगा
अर ज़िन्दगी से अपनी कहीं जोड़ने लगा
जिसकी ज़ुबां पे प्यार के अल्फ़ाज़ ही नहीं
नफ़रत के लफ़्ज़ आज वही बोलने लगा
हमने उसी को अपना बनाया था राज़दार
जो राज़ दफ़्न थे वो सभी खोलने लगा
अपना किसे कहूँ कि जहां में तेरे सिवा
रिश्ते हरेक शख़्स यहाँ तोड़ने लगा
अपनी हदों को तोड़के मिलने की आरज़ू
एहसास की रिदाएं ही मैं ओढ़ने लगा
आने लगी है यार की अब याद इस तरह
हर वक़्त हर घड़ी मैं उसे सोचने लगा
-सुरेश पसारी
रिदा... चादर
लाजवाब भावाभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (03-04-2019) को "मौसम सुहाना हो गया है" (चर्चा अंक-3294) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह, ख़ूब
ReplyDelete