Friday, June 8, 2018

कभी न कभी....कुसुम कोठारी

मन की दहलीज पर
स्मृति का चंदा उतर आता
यादों के गगन पर,

सागर के सूने तट पर
फिर लहरों की हलचल
सपनो का भूला संसार
फिर आंखों में ,

दूर नही सब
पास दिखाई देते हैं
न जाने उन अपनो के
दरीचों मे भी कोई
यादों का चंदा
झांकता हो कभी,

हां भूला सा कल सभी को
याद तो आता ही होगा
यादों की दहलीज पर
कोई मुस्कुराता ही होगा
कभी न कभी 
-कुसुम कोठारी 

7 comments:

  1. बहुत सुंदर रचना है दी,
    मन की दहलीज पर
    स्मृति का चंदा उतर आता
    यादों के गगन पर,
    बेहद लाज़वाब पंक्तियां👌👌👌

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    1. सस्नेह आभार श्वेता आपको पसंद आई रचना स्नेह से सरोबार हो गई।

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  2. हां भूला सा कल सभी को
    याद तो आता ही होगा
    यादों की दहलीज पर
    कोई मुस्कुराता ही होगा
    कभी न कभी ......बहुत सुन्दर!

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    1. सादर आभार विश्व मोहन जी आपकी सक्रिय प्रतिक्रिया मिली रचना सार्थक हुई

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (09-06-2018) को "छन्द हो गये क्ल्ष्टि" (चर्चा अंक-2997) (चर्चा अंक-2989) (चर्चा अंक-2968) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. सादर आभार आदरणीयजी, मै चर्चा मे अवश्य सम्मिलित होऊंगी।

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  4. सादर आभार कविता जी।

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