मेरी आँखों में मुहब्बत के जो मंज़र है
तुम्हारी ही चाहतों के समंदर है
में हर रोज चाहता हूँ कि तुझसे ये कह दूँ मगर
लबों तक नहीं आता, जो मेरे दिल के अन्दर है
मेरे दिल में तस्वीर हे तेरी, निगाहों में तेरा ही चेहरा है,
नशा आँखों में मुहब्बत का, वफ़ा का रंग ये कितना सुनहरा है,
दिल की कश्ती कैसे निकले अब चाहत के भंवर से
समंदर इतना गहरा है, किनारों पर भी पहरा है
वो हर रोज मुझसे मिलती है, मैं हर बार नहीं कह पाता
जो दिल में इतना प्यार भरा है, लबो पर क्यों नहीं आता
हम भी नहीं करते थे प्यार-मुहब्बत के किस्सों पर यकीं,
पर जब दिल को छू जाये एक बार, फिर कोई और नहीं भाता
- दिनेश गुप्ता
उम्दा गजल ।
ReplyDeleteवाह बहुत खूब
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (29-06-2018) को "हम लेखनी से अपनी मशहूर हो रहे हैं" (चर्चा अंक-3016) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह बहुत सुंदर गजल
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