इनकी ख़ुशबू से मुअत्तर है ये गुलशन मेरा,
मेरे बच्चों से महकता है नशेमन मेरा।
खेलते देखती हूँ जब भी कभी बच्चों को,
लौट आता है ज़रा देर को बचपन मेरा।
मुझको मालूम है दरअस्ल है दुनिया फ़ानी,
मोहमाया में गुज़र जाए न जीवन मेरा।
तू जो आ जाए तो बरसात में भीगें दोनों,
सूखा-सूखा ही गुज़र जाए न सावन मेरा।
खो गई कौन सी दुनया में न जाने 'सीमा',
आ तरसता है तेरे वास्ते आँगन मेरा।
-कवियत्री सीमा गुप्ता
बहुत सुन्दर ।
ReplyDeleteबच्चों के बिना घर अधूरा ....बच्चे बिना सूना घर संसार ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर