इश्क मोहब्बत आवारापन।
संग हुए जब छूटा बचपन ॥
मैं माँ से जब दूर हुआ तो ,
रोया घर, आँचल और आँगन ॥
शीशे के किरचे बिखरे हैं ,
उसने देखा होगा दर्पण ॥
परदे के पीछे बज-बज कर ,
आमंत्रित करते हैं कंगन ॥
चन्दा ,सूरज ,पर्वत, झरना ,
पावन पावन पावन पावन ॥
बिकता हुस्न है बाज़ारों में ,
प्यार मिले है दामन दामन ॥
कौन कहे बिगड़े संगत से ,
देता सर्प को खुश्बू चंदन ॥
दुनिया उसको रब कहती है ,
मैं कहता हूँ उसको साजन॥
-प्रकाश सिंह 'अर्श'
सुन्दर ।
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ReplyDeleteDESI INDIAN TADKA
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