शाख के पीले पत्ते रंग बदलते हुए
सांस-सांस टहनी पर गंवा देते हैं
उम्मीदें दामन को कसके पकड़े हुए,
आंधियों की औकात को हवा देते है
भोर के भानु-सी मुस्कान सजा देते हैं
अंबर के बदरवा को देख नाच लेते हैं
स्पंदन के संचार पर गा लिया करते हैं
सप्त लहरी संगीत के स्वर सजा देते हैं
बहारों में शजर को बाखूब सजा देते हैं,
करारी धूप में खुद को भी जला लेते हैं
जानते हैं ये दिन लौटकर नहीं आते है
इंतजार में कितने मधुमास गंवा देते है
नई-नई कोंपलों को भी जीवन देते हैं
आंख से मोती बनके टूट बिखर जाते हैं
कुछ ऐसा जिंदगी का इम्तेहान देते हैं
मर के अपनी हस्ती को हौंसला देते है
जब कभी शजर का साथ छोड़ देते हैं
वजूद को लोगों के पैरों में दबा देते है
-निशा माथुर
जय मां हाटेशवरी...
ReplyDeleteअनेक रचनाएं पढ़ी...
पर आप की रचना पसंद आयी...
हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 24/11/2016 को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।
बहुत सुन्दर ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर ।
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 24.11.2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2536 पर दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद