Sunday, November 20, 2016

महंगी रात... मीना कुमारी


जलती-बुझती-सी रोशनी के परे
हमने एक रात ऐसे पाई थी

रूह को दांत से जिसने काटा था
जिस्म से प्यार करने आई थी 

जिसकी भींची हुई हथेली से 
सारे आतिश फशां उबल उट्ठे

जिसके होंठों की सुर्खी छूते ही
आग-सी तमाम जंगलों में लगी  

आग माथे पे चुटकी भरके रखी
खून की ज्यों बिंदिया लगाई हो
 ......
किस कदर जवान थी,
कीमती थी.. 
महंगी थी.. 
वह रात.. 
हमने जो.. 
रात यूं ही पाई थी। 

-मीना कुमारी

2 comments:

  1. @किस कदर जवान थी,
    कीमती थी..
    महंगी थी..
    वह रात..
    हमने जो..
    रात यूं ही पाई थी।
    वाह !

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  2. मीना कुमारी की शायरी काव्य-शास्त्रीय मापदंड पर भले ही हमेशा खरी न उतरती हो पर उसमें व्यक्त अपने किसी अज़ीज़ को खोने का दर्द, उस से बिछड़ने की तड़प और उसकी बेवफ़ाई के बाद भी बिना किसी कड़वाहट के, उसको प्यार के साथ, शिद्दत के साथ याद करते रहना, सबके दिल को गहराई तक छू जाता है.

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