Thursday, April 4, 2013

शर्म से मर जाऊंगा.................अजीज अंसारी






झूठ का लेकर सहारा जो उबर जाऊंगा
मौत आने से नहीं शर्म से मर जाऊंगा


सख्त* जां हो गया तूफान से टकराने पर
लोग समझते थे कि तिनकों सा बिखर जाऊंगा


है यकीं** लौट के आऊंगा मैं फतेह*** बनकर
सर हथेली पे लिए अपना जिधर जाऊंगा


सिर्फ जर्रा**** हूं अगर देखिए मेरी जानिब
सारी ‍दुनिया में मगर रोशनी कर जाऊंगा


कुछ निशानात# हैं राहों में तो जारी है सफर
ये निशानात न होंगे तो किधर जाऊंगा


जब तलक मुझमें रवानी है@ तो दरिया हूं 'अजीज'
मैं समन्दर में जो उतरूंगा तो मर जाऊंगा


*मजबूत ** विश्वास ***विजयी ****कण  #चिह्न  @बहा

- अजीज अंसारी

6 comments:

  1. सख्त* जां हो गया तूफान से टकराने पर
    लोग समझते थे कि तिनकों सा बिखर जाऊंगा.

    वाह ...कोई जवाब नहीं.

    पधारिये आजादी रो दीवानों: सागरमल गोपा (राजस्थानी कविता)

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  2. सिर्फ जर्रा**** हूं अगर देखिए मेरी जानिब
    सारी ‍दुनिया में मगर रोशनी कर जाऊंगा।।

    खुदी की बुलंदी को छूते आकर्षित शब्द !!
    हौसले की तारीफ के लिए शब्द छोटे लग रहे !!
    शुभकामनायें !!

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  3. पुर जोश और होसला बढ़ाती खूबसूरत रचना .....
    साभार.....

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  4. सुंदर अनुभूति सार्थक रचना
    उत्कृष्ट प्रस्तुति
    बहुत बहुत बधाई

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  5. सार्थक अभिव्यक्ति!
    साझा करने हेतु आभार!

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  6. बहुत ही बेहतरीन उम्दा प्रस्तुति,आभार.

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