Thursday, April 25, 2013

बहुत खुशहाल हूं मैं आज 'रेखा'...................रेखा अग्रवाल


को यह बात भी पूछे उसी से,
अंधेरा क्यूं खफा है रोशनी से !

तुम्हारे अपने ही कब काम आए,
तुम्हें उम्मीद तो थी हर किसी से !

अब ऐसे दर्द को क्या दर्द समझें,
जो सीने में दबा है खामोशी से !

नहीं भाती है दिल को कोइ सूरत,
हमें तो वास्ता है आप ही से !

तुम्हें पूजा, तुम्हें चाहा है मैने,
बडी तस्कीन है इस बन्दगी से !

किसी के लौट आने की खबर है,
बहुत बेचैन हूं मैं रात ही से !

बहुत खुशहाल हूं मैं आज 'रेखा',
कोइ शिकवा नहीं है जिन्दगी से !


--रेखा अग्रवाल 

ग़ज़लः सौजन्य श्री अशोक खाचर के ब्लाग से

10 comments:

  1. नहीं भाती है दिल को कोइ सूरत,
    हमें तो वास्ता है आप ही से ! chahaa tumhe chatak ki bhanti
    डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
    latest post बे-शरम दरिंदें !
    latest post सजा कैसा हो ?

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  2. बहुत सुन्दर ग़ज़ल रेखा जी की ...
    पढवाने का आभार यशोदा ...

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  3. khoobshurat gazal vo bhi behad khoobshurat andaz me, sadar

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  4. बेहद खूबसूरत ग़ज़ल की प्रस्तुति,आभार.

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  5. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शुक्रवार (26-04-2013) के चर्चा मंच 1226 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ

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  6. तुम्हारे अपने ही कब काम आए,
    तुम्हें उम्मीद तो थी हर किसी से !-------

    सहज पर गहन अनुभूति
    सुंदर प्रस्तुति

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  7. अत्यंत सुन्दर प्रस्तुति |

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

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  8. बहुत सुंदर ग़ज़ल प्रस्तुति...

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  9. बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति!
    साझा करने के लिए धन्यवाद!

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