कोई यह बात भी पूछे उसी से,
अंधेरा क्यूं खफा है रोशनी से !
तुम्हारे अपने ही कब काम आए,
तुम्हें उम्मीद तो थी हर किसी से !
अब ऐसे दर्द को क्या दर्द समझें,
जो सीने में दबा है खामोशी से !
नहीं भाती है दिल को कोइ सूरत,
हमें तो वास्ता है आप ही से !
तुम्हें पूजा, तुम्हें चाहा है मैने,
बडी तस्कीन है इस बन्दगी से !
किसी के लौट आने की खबर है,
बहुत बेचैन हूं मैं रात ही से !
बहुत खुशहाल हूं मैं आज 'रेखा',
कोइ शिकवा नहीं है जिन्दगी से !
--रेखा अग्रवाल
ग़ज़लः सौजन्य श्री अशोक खाचर के ब्लाग से
नहीं भाती है दिल को कोइ सूरत,
ReplyDeleteहमें तो वास्ता है आप ही से ! chahaa tumhe chatak ki bhanti
डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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ye bhotachchi gazal hai
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ग़ज़ल रेखा जी की ...
ReplyDeleteपढवाने का आभार यशोदा ...
khoobshurat gazal vo bhi behad khoobshurat andaz me, sadar
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत ग़ज़ल की प्रस्तुति,आभार.
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शुक्रवार (26-04-2013) के चर्चा मंच 1226 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
ReplyDeleteतुम्हारे अपने ही कब काम आए,
ReplyDeleteतुम्हें उम्मीद तो थी हर किसी से !-------
सहज पर गहन अनुभूति
सुंदर प्रस्तुति
अत्यंत सुन्दर प्रस्तुति |
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
बहुत सुंदर ग़ज़ल प्रस्तुति...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति!
ReplyDeleteसाझा करने के लिए धन्यवाद!