कसमसाता बदन रहा मेरा
चूम दामन गई हवा मेरा
मुझको लूटा है बस खिज़ाओं ने
गुले दिल है हरा भरा मेरा
तन्हा मैं हूँ, तन्हा राहें भी
साथ तन्हाइयों से रहा मेरा
खोई हूँ इस कद्र ज़माने में
पूछती सबसे हूँ पता मेरा
आईना क्यों कुरूप इतना है
देख उसे अक्स डर रहा मेरा
मेरी परछाई मेरे दम से है
साया उसका, कभी बड़ा मेरा
मैं अंधेरों से आ गया बाहर
जब से दिल और घर जला मेरा
जिसने भी दी दुआ मुझे देवी
काम आसान अब हुआ मेरा
मेरी परछाई मेरे दम से है
ReplyDeleteसाया उसका, कभी बड़ा मेरा .......।
बहुत खूब !
बहुत सुंदर !!
बहुत खूब
ReplyDeletewaaaaaaah waaaaaaaah
ReplyDeleteसुंदर गजल
ReplyDeleteक्योंकि लड़की हूँ मैं
तन्हा मैं हूँ, तन्हा राहें भी
ReplyDeleteसाथ तन्हाइयों से रहा मेरा
बहुत सुन्दर ...
बधाई एवं शुभकामनायें ...
"खोई हूँ इस कद्र ज़माने में
ReplyDeleteपूछती सबसे हूँ पता मेरा"........बहुत ही सुंदर भाव
lazwab
ReplyDeletebahut sundar Lekhan...
ReplyDeleteमेरी परछाई मेरे दम से है
साया उसका, कभी बड़ा मेरा
मेरी परछाई मेरे दम से है
ReplyDeleteसाया उसका, कभी बड़ा मेरा
very nice.............
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