खामोश
सहमी
सर झुका कर खड़ी बेटी को देख
छलकते हृदय से पिता ने उसे अंक में भर लिया..
स्वर संयत कर
दृढ़ आवाज़ में बोले
राजकुमारी है तू मेरी
देख तेरे सर पर ताज सजा है
इसमें कुन्दन सा दमकता गुरुर है मेरा
अभिमान के मोती जड़े हैं
गुमान के हीरे लगे हैं
नेह के नीलम मढ़े हैं..
यूँ सर न झुका
कदम साध
नज़रें उठा
और अपना ताज संभाल..
कि जिंदगी के हर मोड़
हर परिस्थिति में
हर ठोकर और उलझन में
निराश के हर अँधियारे में
और आशा की उजली भोर में
तुझ संग तेरा पिता
प्रत्यक्ष या परोक्ष
सम्बल सा खड़ा मिलेगा...
~निधि सक्सेना
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