तभी दरवाजे की घंटी बजी मैंने दरवाजा खोला तो सामने रानी थी मै कुछ कहती उसके पहले ही वो तेज़ी से रसोई में चली गई..
आज तेरी माँ कहा गई रानी , मैंने उससे पूछा,
रानी की आँखे पनीली हो आई ,
वो ..वो..कल आएगी मैडम जी। वो बर्तन साफ करते हुए बोली.
पर तू तो ससुराल जाने वाली थी ना? मैंने फिर पूछा
हां पर अब नहीं जाउंगी वो बोली।
क्यों,वो मेरा बापू मुझे दूसरी जगह भेजना चाहता है।
क्या मतलब? मैंने थोडा आश्चर्य से पूछाः
वो हमारी जाति में लड़के वालों से पैसे लेकर शादी करते हे, अब कोई दूसरा ज्यादा पैसे दे रहा हे तो बापू ने मेरी शादी तोड़ दी है पंचायत बिठाकर,
कहता है हमारी लडकी को दुख देते हैं।
तो क्या सच में तुझे दुःख देते हैे?
नहीं मैडम जी। अब ससुराल में तो ये सब चलता है न। बड़ी सहजता से वो बोली, 'पर मेरा पति बहुत अच्छा है", कहते हुए वो थोडा लजा गई। उसकी बड़ी बड़ी आँखें मानों सपनों से भर गई , 'तब तू मना क्यों नही कर देती", मैने पूछा।
नही वो बापू कहता हे तू अगर वहां गई तो फिर हम से रिश्ता नही रहेगा . अब मै पीहर वालो से रिश्ता कैसे तोड़ दूँ । मजबूरी है, बापू को तो पैसों का लालच है।
'पर तेरी माँ? वो क्या कहती है?
वो भी मजबूर है मैडम जी ,मेरा बापू भी तो उसका दूसरा मर्द है ,उसने भी उसके ज्यादा पैसे दिए थे।
बेहद उदास स्वर में रानी बोली, उनके घरेलू मामले में कुछ न कर पाने को, मै भी मजबूर थी, सबकी अपनी अपनी मजबूरी थी, आँखों के कोरों पर छलक आये आंसुओ को धीरे से अपने हाथों से पोंछ कर रानी चली गई। उसे दूसरे घर जाना था काम करने
-मीनू परियानी
सच्चाई ।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (21-03-2017) को
ReplyDeleteचक्का योगी का चले-; चर्चामंच 2608
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'