अध खिली धूप में अँगड़ाई लें
पैर पसारें आओ चलकर आँगन में
पौष माघ की सर्दी से थे बेहाल
फागुन की मीठी धूप आई है आज...
मेथी आलू गोभी मूली के पराँठे
उन पर धर मक्खन के पेड़े
खाएँ अचार की फाँक लगा के
फागुन की मीठी धूप में जमा के...
उम्रों की गवाह बूढ़ी नानी दादी
बदन पर ओढ़े रंग भरी फुलकारी
आँगन में बैठ नन्हों से बतियातीं
फागुन की मीठी धूप में खिलखिलातीं...
खुले गगन की हदें नापते नव पंछी
मादक गंध बिखेरतीं नई कोपलें फूटी
खेतों ने रंगीले फूलों की चादर ओढ़ी
फागुन की मीठी धूप खिली नवोढ़ी...
खुला शीत लहर से ठिठुरा बदन
हटा कोहरे की चादर का ढाया कहर
अल्साई निंदिया ने छोड़े लिहाफ
फागुन की मीठी धूप ने दिया निजात....
-वीणा विज 'उदित'
बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteआदरणीय भैया जी
Deleteहृदय से आभार
सुबह से बारिश हो रही थी आज
और नेट मे भी हड़ताल कर दी थी
अभी आई है ..
सादर
वीणा विज 'उदित' की सुन्दर रचना प्रस्तुति हेतु धन्यवाद
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 09-03-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2603 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद