यार अब तो ऐसा आलम हो गया है
मेरा हर इक जख्म मरहम हो गया है
कुछ दिनों से वो नज़र आया नहीं के
तनहा तनहा सा ये मौसम हो गया है
हंसते हैं सब, खुश मगर कोई नहीं है
आदमी का आँसू हमदम हो गया है
ये भी मेरा है और वो भी मेरा ही है
हाय मुझको कैसा भ्रम हो गया है
-विशाल मौर्य विशु
सुन्दर।
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