हृदय द्वार बंद हों खोलो,
प्रेम सरोवर दुबकी ले लो।
घिरे प्रलय की घोर घटाएं,
शान्ति दीप निज धरा सजा दो।
लोकहित में हठता हृद छोडो,
बदले समाज निजता तोड़ो।
चादर मैली शुद्धिकरण करा लो,
दुनिया बदली खुद भी बदलो।
भरा पिटारा सौगातों का,
बंद अमृतघट 'मंगल' खोलो।
सडांध से भरा जो कुनबा,
सरयू में आ कर मुख धो लो।।
-सुखमंगल सिंह
सुन्दर।
ReplyDeleteसुशील कुमार जोशी जी हृदय से आभार
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteOnkar ji धन्यवाद !
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteआभार !Meena Bhardwaj ji
ReplyDeleteसादर अभिनंदन शास्त्री जी
ReplyDeleteसु-मन सुमन कपूर जी आभार
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