पता नहीं
कितनी प्यास थी उसके भीतर
कि मैं
जिसे अपने समुद्रों पर
बहुत गर्व था
उसके सामने
पानी का एक छोटा-सा
क़तरा बन जाता
पता नहीं
कितनी अग्नि थी उसके भीतर
कि मैं
जिसे अपने सूरजों पर
बहुत गर्व था
उसके सामने
एक छोटा-सा
जुगनू बन जाता
पता नहीं
कितना प्यार था उसके भीतर
कि मैं
जिसे अपनी बेपनाह मोहब्बत पर
बहुत गर्व था
उसके सामने
मेरा सारा प्यार
एक तिनका-मात्र रह जाता
पता नहीं
कितनी साँस थी उसके भीतर
कि मैं
जिसे अपनी लम्बी साँसों पर
बहुत गर्व था
उसके पास जाता
तो मेरी साँस टूट जाती
पता नहीं
कितने मरूस्थल थे उसके भीतर
कि मैं
जिसे अपने जलस्रोतों पर
बहुत गर्व था
उसकी देह में
एक छोटे से झरने की भाँति
गिरता और सूख जाता
पता नहीं
कितने गहरे पाताल थे उसके भीतर
कि मैं
जिसे बहुत बड़ा तैराक होने का भ्रम था
उसकी आँखों में देखता
तो अंतहीन गहराइयों में
डूब जाता
डूबता ही चला जाता।
- डॉ. अमरजीत कौंके
मूल पंजाबी से हिंदी में रूपांतर : स्वयं कवि द्वारा
डॉ. अमरजीत कौंके
कवि परिचयः
साहित्य अकादमी की दिल्ली और से पंजाबी के कवि , संपादक और अनुवादक डा. अमरजीत कौंके सहित 23 भाषाओँ के लेखकों को वर्ष 2016 के लिए अनुवाद पुरस्कार देने की घोषणा की गई है. अमरजीत कौंके को यह पुरस्कार पवन करन की पुस्तक ” स्त्री मेरे भीतर ” के पंजाबी अनुवाद ” औरत मेरे अंदर ” के लिए प्रदान किया जाएगा. अमरजीत कौंके पंजाबी और हिन्दी साहित्य में जाने पहचाने कवि हैं. उनके 7 काव्य संग्रह पंजाबी में और 4 काव्य संग्रह हिंदी में प्रकाशित हो चुके हैं.अनुवाद के क्षेत्र में अमरजीत कौंके ने डा. केदारनाथ सिंह, नरेश मेहता, अरुण कमल, कुंवर नारायण, हिमांशु जोशी, मिथिलेश्वर, बिपन चंद्रा सहित 14 पुस्तकों का हिंदी से पंजाबी तथा वंजारा बेदी, रविंदर रवि, डा.रविंदर , सुखविंदर कम्बोज, बीबा बलवंत, दर्शन बुलंदवी, सुरिंदर सोहल सहित 9 पुस्तकों का पंजाबी से हिंदी में अनुवाद किया है.
बहुत सुन्दर।
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