कितना सामंजस्य है
सपनों और वृक्षों में !
दोनों
पंक्तियों में सजना पसंद करते हैं ।
कितना भी काटो-छाँटों
उनकी टहनियाँ,
तोड़ लो सारे फल चाहे
नोंच लो सारी पत्तियाँ,
मसल दो फूल और कलियाँ;
फिर भी पनपते रहते हैं
असीम जिजीविषा के साथ
जब तक उन्हें
जड़ से न उखाड़ दिया जाए ।
बचा हो जहन में बीज तो
अवसर मिलते ही
फिर बेताब हो उठते हैं
अपनी-अपनी जमीं पर
अंकुरित होने के लिए !
-मल्लिका मुखर्जी
बचा हो जहन में बीज तो
ReplyDeleteअवसर मिलते ही
फिर बेताब हो उठते हैं
अपनी-अपनी जमीं पर
अंकुरित होने के लिए !......वाह!
सुन्दर।
ReplyDelete