मेरे अपने मुझे मिट्टी में मिलाने आए
अब कही जां के मेरे होश ठिकाने आए
तूने बालो में सजा रक्खा था कागज़ का गुलाब
मै ये समझा कि बहारो के ज़माने आए
चाँद ने रात की दहलीज़ को बख्शे है
चिराग़ मेरे हिस्से में भी अश्को के खज़ाने आए
दोस्त होकर भी महीनो नहीं मिलता मुझसे
उससे कहना कि कभी जख्म लगाने आए
फुरसते चाट रही है मेरी हस्ती का लहू
मुंतज़िर हूँ कि कोई मुझे बुलाने आए
-राहत इंदौरी
श्रद्धांजलि
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